फॉर्मूला-1 के इंजीनियरों ने ब्रीदिंग मशीन बनाई, मरीजों को आईसीयू और वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ेगी, 100 डिवाइस का ट्रायल शुरू

लंदन. कोरोनावायरस की वजह से दुनियाभर के प्रमुख देश वेंटीलेटर की समस्या से जूझ रहे हैं। न्यूयॉर्क में एक वेंटीलेटर पर चार जिंदगियां हैं। इटली और ब्रिटेन के डॉक्टर गंभीर मरीजों और बुजुर्गों को वेंटिलेटर पर से हटा रहे हैं ताकि युवाओं को बचाया जा सके। इस बीच दुनिया की मशहूर कार कंपनी मर्सडीज के फॉर्मूला-1 के इंजीनियरों की टीम ने लंदन यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर महज 4 दिनों में ब्रीदिंग मशीन बनाई है। इसकी मदद से कोरोनावाइरस के मरीजों को इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।


इस डिवाइस को कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) नाम दिया गया है। उत्तरी लंदन के अस्पतालों में ऐसे 100 यंत्रों को क्लिनिकल ट्रायल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस हफ्ते के अंत तक लंदन यूर्निवर्सिटी के अस्पतालों में इस डिवाइस का क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो जाएगा। मर्सडीज की टीम का कहना है कि वे ऐसे 300 यंत्र एक दिन में बना सकते हैं। अगर फॉर्मूला-1 की अन्य टीमें साथ आएं तो एक दिन में ऐसी 1000 डिवाइस बनाई जा सकेगी।

इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिक्स एंड इंजीनियरिंग इन मेडिसिन के स्टीफेन ओकॉनर ने बताया कि इस यंत्र की मदद से सांस लेने में वैसा ही महसूस होता है जैसे की आप तेज चल रही कार का शीशा उतार कर खिड़की से बाहर मुंह करके सांस ले रहे हों। इसके इस्तेमाल से मरीजों को बेहोश करने की आवश्यक्ता नहीं पड़ती इसलिए वे जल्दी अस्पताल से छूट कर घर जा सकते हैं।


मरीजों को बेहोश भी नहीं करना पड़ेगा, मॉस्क से पहुंचेगी ऑक्सीजन

ये यंत्र मरीजों के मास्क के माध्यम से उनके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करेगा। ये ऐसे मरीजों के लिए बेहद लाभकारी होगा जो बहुत कमजोर हैं और उन्हें इंटेसिव वेंटीलेशन नहीं दिया जा सकता। इंटेंसिव वेंटीलेशन में मरीजों के नाक से ट्यूब डाल कर उनके फेंफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाया जाता है ताकी मरीज सांस ले सकें। इसके इस्तेमाल से मरीजों को बेहोश करने की आवश्यक्ता नहीं पड़ती है। इस तकनीक को पहले से ही इटली में इस्तेमाल किया जा रहा है जहां वेंटीलेटर की बेहद कमी है।



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ब्रीदिंग मशीन


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